करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान।
आपने वह कहानी तो सुनी होगी की एक वरदराज नाम का एक विद्यार्थी होता है। कक्षा में वह सबसे नालायक होता है।
गुरुदेव एक दिन उसको बुला कर कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे।
जो सीखना था गुरुकुल में वह सीख लिया है, अब तुम घर जाओ।
उसको सुबह-सुबह घर के लिए निकलना था, तो गुरु माता ने रास्ते के लिए कुछ गुड़ चने का सत्तू बांध दिया।
अनमने मनसे वरदराज अपने घर के लिए सुबह सुबह ही निकल पड़ता है। वह बहुत ही निराश हो चुका था, उदास उदास मन से वह घर की तरफ चल रहा होता है।
गुरु आश्रम से घर का रास्ता काफी दूर था तो उसने सोचा थोड़ा विश्राम कर लिया जाए उसके बाद घर की तरफ चला जाए।
रास्ते में एक कुआं पड़ता है तो कुआं के पास वो रुक जाता है।
सोचता है कुआं में ठंडा पानी है और वह ठंडा पानी पी कर सत्तू भी खा सकता है।
अब वह सत्तू के लिए पानी निकालने के लिए बर्तन और रस्सी को खींच लेता है।
कुछ क्षण बाद उसका ध्यान रस्सी से घिसने वाले पत्थर की ओर निशान पर जाता है।
वह सोचता है कि एक रस्सी जो की सुत की बनी हुई है। अगर यह रसीद बार-बार पत्थर पर घिसने से अगर पत्थर को काटकर निशान बना सकते हैं तो मैं निरंतर अभ्यास करके एक अच्छा विद्यार्थी क्यों नहीं बन सकता?
यह विचार छात्र वरदराज के दिमाग में बिजली की तरह कौंध रहा था।
उसी क्षण उस ने निर्णय लिया कि वह गुरुकुल वापस लौटेगा और अपने अध्ययन को नियंत्रित और निरंतर करेगा।।
फिर क्या था आने वाले दिनों में छात्र वरदराज बहुत बड़े ज्ञानी संत बने और अपने जीवन में और लोगों को भी प्रेरित किया।