Monday, January 23, 2017

Importance of food

एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी ।
अब यह जानने के लिए ऋषि ने तपस्या की,
कि पाप कहाँ जाता है ?
तपस्या करने के फलस्वरूप भगवान प्रकट हुए ।
ऋषि ने पूछा कि भगवान, जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ?
भगवान ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है,

दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि, हे गंगे ! सब लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई ।
गंगा ने कहा मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ ।
अब वे लोग समुद्र के पास गए,
हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए ?
समुद्र ने कहा मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ ।
अब वे लोग बादल के पास गए,
हे बादल ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है, तो इसका मतलब आप पापी हुए ।
बादल ने कहा मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ, जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है ।
उस अन्न में जो अन्न
* जिस मानसिक स्थिति से उगाया जाता है और
* जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है,
* जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है,
उसी अनुसार मानव की मानसिकता बनती है ।
इसीलिये कहते हैं, "जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन” ।
अन्न को जिस वृत्ति (कमाई) से प्राप्त किया जाता है और जिस मानसिक अवस्था में खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते है।
इसीलिये सदैव भोजन शांत अवस्था में पूर्ण रूचि के साथ करना चाहिए,
और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए वह धन भी श्रम का होना चाहिए ।oooooo